Sunday 23 November 2014


पहाड़ की नारी का दुःख 


ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण?
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण?
ना जा – ना जा – ना जा हे ना जा,
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण

तेरि भों मि पतरोळ कखी भि जौऊँ, तू ड्यूटी समाळ जंगळ बचौऊं
तेरि भों मीं पतरोळ कखी भी जोंऊँ, तू ड्यूटी समाळ जंगळ बचौऊं
भेळ उन्द पोडु मीं डाळा उन्द मोरू चा जंगळ चोरु मिन घास ली जांण, गौरू भैंस्यूं थें क्या खलांण
ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं थें क्या खलांण


गुन्दक्याळी खुट्टी तेरि खस्स रैड़ीली, पट्ट मोरि जेलि भेळ उन्द पोड़ीली
गुन्दक्याळी खुट्टी तेरि खस्स रैड़ीली, पट्ट मोरि जेलि भेळ उन्द पोड़ीली
तेरि दाथी चदीरिल, गौर-बछूरूल, सासु ससुरोंल खौळ्यूं रै जाण- जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण
ना जा – ना जा – ना जा हे ना जा,
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण

Anuradha Nirala Singing Jideri Ghasyari
बण भी सरकारी तेरो मन भी सरकारी, तिन क्या सम्झिण हम लोगु कि खारी
बण भी सरकारी तेरो मन भी सरकारी, तिन क्या सम्झिण हम लोगु कि खारी
जब बण जौला लाखुड़ घास लोंला, और गौरू पिजोला तब चुल्लू जगांण, नौनळ निथर भुक्खु सेजांण..
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण

पाड़ै बेटी-ब्वार्यू कू बण ही च सारु, जणदु छौं मी भी- पर क्याजि कारू?
पाड़ै बेटी-ब्वार्यू कू बण ही च सारु, जणदु छौं मी भी- पर क्याजि कारू?
दया जु आली, साबल सुण्याली त नौकरी जाली मेरी छुट्टी ह्वै जांण, बाल-बच्चों मिन क्या खलाण?
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण
ना जा – ना जा – ना जा हे ना जा,
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
गढ़वाल उत्तराखंड लोक संस्कृति

ऊँचे -ऊँचे चीड के पेड़ ,प्राकृतिक स्रोतों से बहता पानी .सीढीनुमा खेत और दूर तक जाती हुई पतली पगडंडियां। हाँ, कुछ ऐसा ही दृश्य हमारी आंखों के आगे छा जाता है जब हम उत्तरांचल का जिक्र करते हैं। उत्तरांचल ,एक ऐसा भूखंड है जो प्राकृतिक सौन्दर्य तथा अपने रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर दूर बसे लोगों को आज भी आकर्षित करती हैं।
गीत-संगीत हो या फिर त्योहारों की रौनक उत्तरांचल की सभी परम्पराएँ बेजोड़ हैं । इनमें से उत्तरांचल की होली, रामलीला , ऐपण ,रंगयाली पिछोड़ा, नथ, घुघूती का त्यौहार आदि विशेष प्रसिद्ध हैं। यदि खान-पान की बात की जाए तो यहाँ के विशेष फल -काफल, हिशालू , किल्मौडा, पूलम हैं तथा पहाड़ी खीरा, माल्टाऔर नीबू का भी खासा नाम है। जीविका के लिए उत्तरांचल छोड़कर जो लोग शहरों में बस गए हैं, उन्हें यही परम्पराएं अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करती हैं साथ ही साथ उत्तरांचल वासी होने का एहसास उनमें सदा जीवंत रहता है।
uttarakhand lok saskriti 



The culture of a place depends on its inhabitants, his environment and his heritage. Uttrakhand has all the things in the abundance. Indeed,