Sunday 28 December 2014

Garhwali song by Narendra Singh Negi,Meena Rana & Jyoti Nagpal

Jhumki Kano mai - Latest Garhwali Song (2014) -Prem Singh Gusain | Bhawna Barthwal | Govind Kandari

Friday 26 December 2014

स्टेफन फ़िओल, प्रीतम का ढोल दम्न्यु शो

Chaumasi Barkha Kuredi Loki | Preetam Bharatwan | Jagi Re | Rama Cassettes

Jagar Jagi Re | Preetam Bharatwan Meena Rana | Jagi Re | Super Hit Garhwali Jagar

Pandavaas Group in YUCA 2013

RANCHANA | Garhwali Folk Sadeyi | Soudamini Venkatesh | Pandavaas

Chal E Duniya Se Door [Full Song] Aejadi Bhagyaani

दुरु पर्देशु छौहोंमैं !!! इस सब्द
को सुनकर , हर उस परदेसी का रोम रोम
खड़ा हो जाता है , जिसने इस पापी पेट
के लिए , अपने ,घर बार सब कुछ , अपने
माँ बाप भाई बहिन और गाँव गलियों और
देश को त्याग रखा है ,और कुछ पल ऐसे
होते हैं कि सब कुछ भूल जाने के बाद
भी अपनों और अपने गाँव गलियों ,और
माँ बाप भाई बहिनों कि याद आ
ही जाती है और शादी होने के बाद
भी कुछ ऐसे लोग भी होते हैं
जो अपनी पतनी को शाथ नहीं ले
जा सकते हैं , जानकर सायद कोई
भी नही ले जाते हैं ,
आदमी कि अपनी अपनी परेसानी होती ,जिससे
उसको , उसको अपने बीबी बच्चों को घर
छोड कर परदेश जाना पड़ता है ,क्यूं ये हम
जैसे लोगों के शाथ ही होता है
ये विशेष कर गढ़वाल उत्तराँचल ले
लोगों मैं ज्यादा देखने को मिलता है ,
चलो यही सायद हमारी किस्मत है और ये
पापी पेट भी तो है जो कि इंसान
को सब कुछ त्याग करवाता है , चलो कोई
बात नहीं है हौंसला बुलंद होना कहिये ,
एक दिन खुशियाँ जरूर हमारे कदम
चूमेगी ,
श्री नरेंदर सिंह नेगी जी ने ये
जो गाना गया है सायद हम लोगों के
ऊपर सही लागू होता है , उसी गाने
की ये पंक्तियाँ मैं यहाँ लिखा रहा हूँ
दुरु पर्देसू छूँ , उम्मा तवे तैं मेरा सुऊं , हे
भूली न जेई, चिट्ठी , देणी रई
राजी खुसी छों मैं यख , तू
भी राजी रही तख
गौं गोलू मा चिट्ठी खोली ,
मेरी सेवा सौंली बोली
हे भूली न जेई , चिट्ठी देणी रैइ
घाम पाणी मा न रै तू
याखुली डंडियों न जै तू
दुखयारी न हवे जै कखी ,सरिल कु ख्याल
रखी, खानी पैनी खाई
हे भूली न जेई , चिट्ठी देणी रैइ
हुंदा जू पांखुर मैं मा , उड्डी औंदु फुर तवे
मा
बीराना देस की बात , क्यच
उम्मा मेरा हात , हे भूली न जेई ,
चिट्टी देणी रैइ
दुरु पर्देसू छुओं , उम्मा तवे तै मेरा सों , हे
भूली न जेई , चिट्ठी देणी रैइ ,
चिट्ठी देणी रैइ

Tuesday 9 December 2014

Monday 8 December 2014

Malu Givralu ka beech Folk song by Narendra singh Negi & Anuradha Nirala
मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,
मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,

गोरी मुखडी मा हो लाल होंटडी जनि आहा 

मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,
मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,

बांज आयारु कु बोण, फुल्यु बुरांस कनु, 
हेरी साडी मा बिलोज लाल पर्यु जनु.

मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,
मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,

कुत्तर किन्गोड़ कफल, काली हिंसर लरतर 
रसुला देवदारु की ठंडी ठंडी हवा सर सर 

मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,
मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,

खिली मखमली बूग्यालू , मा सरल मा क्या बुलन
आंखी रेह्गेनी देखदी, स्वर्ग पहुचीगी मन 

मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,
मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,

यन्न मा होलू कन जू मन माया नी जोड़लू 
खेल माया कु ना खेल, पछतौन पोडालू

मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,
मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,

केल कुलायु की सेर , तेरा गेल फिर कब,
राजी राली दांडी काँठी, ऋतू बोडली जब, 

मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,
मालू ग्वीरालू का बीच खीनी सकीनी आहा,,,,
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Sulpaa Ki Saaj (Garhwali Video Song) - Kaithai Khojyaani Holi - Narendra Singh Negi, Anuradha Nirala

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गढ़वाली लोक संगीत

गढ़वाली लोक संगीत


 सुपरहिट पेशकश: "गढ़वाली गीत - बेडू पाको बारामासा", गायक: गोबिंद सिंह रावत, कल्पना चौहान, मीना राणा
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Sunday 23 November 2014


पहाड़ की नारी का दुःख 


ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण?
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण?
ना जा – ना जा – ना जा हे ना जा,
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण

तेरि भों मि पतरोळ कखी भि जौऊँ, तू ड्यूटी समाळ जंगळ बचौऊं
तेरि भों मीं पतरोळ कखी भी जोंऊँ, तू ड्यूटी समाळ जंगळ बचौऊं
भेळ उन्द पोडु मीं डाळा उन्द मोरू चा जंगळ चोरु मिन घास ली जांण, गौरू भैंस्यूं थें क्या खलांण
ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं थें क्या खलांण


गुन्दक्याळी खुट्टी तेरि खस्स रैड़ीली, पट्ट मोरि जेलि भेळ उन्द पोड़ीली
गुन्दक्याळी खुट्टी तेरि खस्स रैड़ीली, पट्ट मोरि जेलि भेळ उन्द पोड़ीली
तेरि दाथी चदीरिल, गौर-बछूरूल, सासु ससुरोंल खौळ्यूं रै जाण- जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण
ना जा – ना जा – ना जा हे ना जा,
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण

Anuradha Nirala Singing Jideri Ghasyari
बण भी सरकारी तेरो मन भी सरकारी, तिन क्या सम्झिण हम लोगु कि खारी
बण भी सरकारी तेरो मन भी सरकारी, तिन क्या सम्झिण हम लोगु कि खारी
जब बण जौला लाखुड़ घास लोंला, और गौरू पिजोला तब चुल्लू जगांण, नौनळ निथर भुक्खु सेजांण..
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण

पाड़ै बेटी-ब्वार्यू कू बण ही च सारु, जणदु छौं मी भी- पर क्याजि कारू?
पाड़ै बेटी-ब्वार्यू कू बण ही च सारु, जणदु छौं मी भी- पर क्याजि कारू?
दया जु आली, साबल सुण्याली त नौकरी जाली मेरी छुट्टी ह्वै जांण, बाल-बच्चों मिन क्या खलाण?
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण
ना जा – ना जा – ना जा हे ना जा,
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
गढ़वाल उत्तराखंड लोक संस्कृति

ऊँचे -ऊँचे चीड के पेड़ ,प्राकृतिक स्रोतों से बहता पानी .सीढीनुमा खेत और दूर तक जाती हुई पतली पगडंडियां। हाँ, कुछ ऐसा ही दृश्य हमारी आंखों के आगे छा जाता है जब हम उत्तरांचल का जिक्र करते हैं। उत्तरांचल ,एक ऐसा भूखंड है जो प्राकृतिक सौन्दर्य तथा अपने रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर दूर बसे लोगों को आज भी आकर्षित करती हैं।
गीत-संगीत हो या फिर त्योहारों की रौनक उत्तरांचल की सभी परम्पराएँ बेजोड़ हैं । इनमें से उत्तरांचल की होली, रामलीला , ऐपण ,रंगयाली पिछोड़ा, नथ, घुघूती का त्यौहार आदि विशेष प्रसिद्ध हैं। यदि खान-पान की बात की जाए तो यहाँ के विशेष फल -काफल, हिशालू , किल्मौडा, पूलम हैं तथा पहाड़ी खीरा, माल्टाऔर नीबू का भी खासा नाम है। जीविका के लिए उत्तरांचल छोड़कर जो लोग शहरों में बस गए हैं, उन्हें यही परम्पराएं अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करती हैं साथ ही साथ उत्तरांचल वासी होने का एहसास उनमें सदा जीवंत रहता है।
uttarakhand lok saskriti 



The culture of a place depends on its inhabitants, his environment and his heritage. Uttrakhand has all the things in the abundance. Indeed,